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गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश को अर्पित करें ये खास नैवेद्य, जानें उनके महत्व!

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गणेश चतुर्थी का महत्व

Ganesh Chaturthi (Image Credit-Social Media)

Ganesh Chaturthi

गणेश चतुर्थी नैवेद्य: भारत में त्योहारों की खुशबू हर जगह फैली हुई है। हर पर्व अपने साथ श्रद्धा, खुशी और स्वाद लेकर आता है। गणेश चतुर्थी, जो भाद्रपद माह की चतुर्थी से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी तक मनाया जाता है, विशेष रूप से प्रिय है। यह उत्सव घरों और पंडालों में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दौरान पूजा के साथ-साथ रसोई में बन रहे स्वादिष्ट नैवेद्यों की महक भी वातावरण को महका देती है। भगवान गणेश को प्रसाद बहुत पसंद है, खासकर मोदक। लेकिन मोदक के अलावा भी लड्डू, पूरन पोली, श्रीखंड, खीर, नारियल और अन्य मिठाइयां उन्हें अर्पित की जाती हैं। मान्यता है कि यदि गणेश जी के प्रिय व्यंजनों का भोग श्रद्धा से अर्पित किया जाए, तो भक्त की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।


नैवेद्य की परंपरा नैवेद्य की परंपरा


भारतीय संस्कृति में भोजन को देवताओं को अर्पित करने की एक प्राचीन परंपरा है। नैवेद्य का अर्थ है, भगवान को प्रेमपूर्वक भोजन अर्पित करना। यह माना जाता है कि जिस श्रद्धा और शुद्धता से हम प्रसाद बनाते हैं, भगवान उसे उसी भाव से स्वीकार करते हैं। गणपति बप्पा को सरलता से प्रसन्न होने वाला देवता माना जाता है, और उनके लिए कुछ विशेष नैवेद्य हैं जो उन्हें बहुत प्रिय हैं।
गणेश जी के प्रिय प्रसाद मोदक: बप्पा का प्रिय प्रसाद

गणेश चतुर्थी का नाम सुनते ही सबसे पहले मोदक का ख्याल आता है। महाराष्ट्र में इसे उकडीचे मोदक कहा जाता है, जो चावल के आटे से बनता है और गुड़ और नारियल की भरावन से भरा होता है। इसे भाप में पकाकर तैयार किया जाता है। इसका स्वाद और सुगंध अद्भुत होती है। शास्त्रों में मोदक को ज्ञान का प्रतीक माना गया है। श्रद्धालु मानते हैं कि 21 मोदक अर्पित करने से घर में सुख और समृद्धि का वास होता है।


लड्डू: आनंद और समृद्धि का प्रतीक

लड्डू के बिना गणेश उत्सव अधूरा लगता है। मोतीचूर के छोटे लड्डू या घी से भरे बेसन के लड्डू, दोनों ही गणपति को प्रिय हैं। मोतीचूर के लड्डू आनंद का प्रतीक हैं, जबकि बेसन के लड्डू शक्ति का। जब भक्त प्रेम से लड्डू का भोग लगाते हैं, तो यह माना जाता है कि घर में ऐश्वर्य और शांति आती है।


पूरन पोली: प्रेम और आतिथ्य का प्रतीक

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महाराष्ट्र और कर्नाटक में गणेशोत्सव के दौरान पूरन पोली की विशेष तैयारी होती है। गुड़ और दाल से बनी मीठी भरावन को आटे की पतली रोटी में भरकर बनाया जाता है। यह केवल भोजन नहीं, बल्कि प्रेम और आतिथ्य का प्रतीक है। जब परिवार के लोग इसे गणपति को अर्पित करते हैं, तो यह माना जाता है कि घर में प्रेम और एकता बनी रहती है।
केले का भोग: शुभता का प्रतीक फल

भारतीय पूजा में केला हमेशा शुभ फल माना जाता है। गणपति को केला चढ़ाने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह श्रीवृद्धि और संतान सुख का प्रतीक है। इसलिए गणेशोत्सव के दौरान लोग केले या केले से बने हलवे का नैवेद्य अर्पित करते हैं।


मखाने की खीर: सम्पन्नता का प्रसाद

दूध, मखाने और मेवों से बनी खीर पवित्र मानी जाती है। यह केवल स्वाद में नहीं, बल्कि समृद्धि का प्रतीक भी है। श्रद्धालु मानते हैं कि गणपति को मखाने की खीर अर्पित करने से घर में आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और लक्ष्मी का वास होता है।


नारियल: पवित्रता और बलिदान का प्रतीक

पूजा में नारियल का स्थान अद्वितीय है। इसे त्रिदेव का प्रतीक माना गया है। नारियल फोड़ने का अर्थ है अपने अहंकार का त्याग करना। गणपति को नारियल या नारियल के लड्डू अर्पित करने से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और सफलता के द्वार खुलते हैं।


श्रीखंड: शांति और प्रसन्नता का दूत

महाराष्ट्र और गुजरात में श्रीखंड गणेशोत्सव का अनिवार्य हिस्सा है। दही, चीनी और केसर से बना यह व्यंजन न केवल स्वाद में लाजवाब होता है, बल्कि मन को शीतलता और संतुलन भी प्रदान करता है। माना जाता है कि श्रीखंड का प्रसाद अर्पित करने से घर में आनंद और मानसिक शांति बनी रहती है।


चूरमा: मेहनत और संतोष का प्रतीक

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राजस्थान की प्रसिद्ध मिठाई चूरमा भी गणपति को अर्पित की जाती है। इसे गेहूं के आटे, घी और गुड़ से बनाया जाता है। यह व्यंजन सिखाता है कि परिश्रम का फल मीठा होता है। गणपति को चूरमा अर्पित करने से दुख-दर्द दूर होते हैं और जीवन में संतोष की अनुभूति होती है।
पंचामृत: पांच तत्वों का संगम

दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल मिलाकर बनने वाला पंचामृत हर पूजा का अभिन्न हिस्सा है। यह पांचों अमृत शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक हैं। गणपति के अभिषेक और नैवेद्य में पंचामृत का विशेष महत्व है। इसे अर्पित करने से शरीर और मन दोनों ही शुद्ध माने जाते हैं।


बप्पा के अन्य प्रिय प्रसाद

गणपति को पेड़े, सूजी का हलवा, रसमलाई और सूखे मेवे भी अर्पित किए जाते हैं। ये व्यंजन जीवन में मिठास और आनंद बढ़ाने वाले माने जाते हैं। भक्त जब पूरे मन से यह प्रसाद चढ़ाते हैं, तो उनका जीवन खुशियों और समृद्धि से भर जाता है।


प्रसाद केवल भोजन नहीं होता, बल्कि यह भक्त की भावनाओं का प्रतीक होता है। जब हम शुद्ध मन और श्रद्धा से व्यंजन बनाकर भगवान को अर्पित करते हैं, तो वे हमारी निष्ठा को स्वीकार करते हैं। यही कारण है कि गणेशोत्सव के दस दिनों तक विभिन्न प्रकार के भोग अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है।


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